Menu
blogid : 14034 postid : 812594

अम्मा और बाबू जी का दर्द

expressions
expressions
  • 27 Posts
  • 33 Comments

अम्मा को गुजरे हुये काफी दिन हुये।
आज बाबू जी 70 साल के हो गये।
हाथ कांपते हैं कदम लड़खड़ाते हैं।
आवाज धीमी हो गई है।
हमेशा कोई न कोई डर सताता रहता है।
बहू, बेटों की बातों से मन व्यथित रहता है।
कल को जब अम्मा थी तो,
बाबू की इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिलता था,
पर आज तो कोई काम ही उनके मन का नहीं होता,
टूटी चारपाई पर खुली आंखों से सोते हुये।
बबू जी को याद आता है, वो मोटा गद्दा,
पंखा झलती हुई, पैर दबाती हुई अम्मा।
बाबू जी की पंसद का खाना बनाती,
बहुत प्यार से खिलाती ।
कुछ कमी होेने पर बाबू जी का चेहरा हो जाता गुस्से से लाल।
उनके डर सेे सिमट कर दुबक जाती अम्मा।
उसके चेहरे की मासूमियत देखकर बाबू जी फिर पछताते।
सभी की खुशी के लिये जीती थी अम्मा।
कभी सास की फटकार, कभी ननदों के ताने।
सब चुपचाप सहती थी, कभी कुछ न कहती।
किसी की शिकायत नहीं, किसी की बुराई नहीं।
पता नहीं कितने आंसुओं को सीने में छुपाये थी अम्मा।
उन्हीं आंसुओं की गर्मी में झुलसती रहती।
पर चुपचाप, धीमे-धीमे सुबकती अम्मा।
और फिर तकलीफों के समुंदर में ऐसी डूबी कि कभी न निकली।
मेरे बाबू जी और हम सबको अकेला छोड़ चली।
मेरी अम्मा।

Tags:   

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply