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ग्लोबल वार्मिंगः तप रही धरती

वर्तमान में ग्लोब्ल वार्मिंग विश्व भर में एक बहुत बड़ी समस्या बन कर उभर रही है।यह एक अन्तराष्ट्रीय समस्या है। धरती के वातावरण का तापमान लगातार बढ़ ही रहा है। पृथ्वी सूर्य की किरणों से गर्मी प्राप्त करती है और ये किरणें वायुमंडल से गुजरती हुई पृथ्वी की सतह से टकराती है। और फिर वहीं से परावर्तित होकर पुनः वापस लौट जातीं है। धरती के वायुमंडल में कई गैंसे है, जिनमें कुछ ग्रीनहाउस गैंसे भी है। इनमें से अधिकतर धरती के उपर एक प्राकृतिक आवरण बना लेती हैं। यह आवरण वापस लौट रहीं कुछ किरणों के हिस्से को रोक लेता है।इस प्रकार यह धरती के वातावरण को गर्म बनाये रखता है।लेकिन ग्रीनहाउसों गैंसों में लगातार बढ़ोत्तरी होने से यह आवरण और भी अधिक मोटा हो जाता है।यह आवरण सूर्य की किरणों को ज्यादा मात्रा में रोकने लगता है। इस प्रकार ग्लोबल वार्मिंग का आगाज हो जाता है।
इस ग्लोबल वार्मिंग की प्रमुख वजह मनुष्य है।आजकल कई कारखाने, बिजली व हवाई जहाज बनाने वाले संयत्र, उघोग धन्धें व बेतहाशा बढ़ता प्रदूषण से अनेक ऐसी गैसें उत्सर्जित होती हैं और यह गैंसों का आवरण सूर्य की किरणों को अधिक से अधिक रोकने लगती है।गाडि़यों से निकलने वाला धुआ भी इसके लिये बहुत दोषी है।आज चारों तरफ बड़ी -बड़ी बहुमंजिला इमारतें. औधौगिक स्थल बन रहें है। जिससे जंगल बहुत तेजी से कट रहें है।जिसके कारण कार्बन डाईआक्साइड गैसों का अवशोषण नहीं हो पाता । पेड़ पौधे कार्बन डाईआक्साइड गैस को ग्रहण कर आॅक्सीजन छोड़ते है और प्राकृतिक रुप से वातावरण को संतुलित करते है।परन्तु जंगल के अंधाधुंध कटाई से यह संतुलन बिगड़ रहा है।
इसके अलावा सूर्य की हानिकारक अल्ट्रावाॅयलट किरणों को रोकनेे वाली ओजोन परत का भी क्षरण बहुत तेजी से हो रहा है। जिसके फलस्वरुप वातावरण का तापमान बहुत गर्म हो रहा है।।ओजोन परत सूर्य से निकलने वाली घातक पराबैंगनी अर्थात अल्ट्रावाॅयलेट किरणों को धरती पर आने से रोकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस ओजोन परत में एक बड़ा छिद्र हो चुका है जिससे ये घातक पराबैंगनी किरणें सीधे धरती आ रहीं हैं. फयूल का इस्तेमाल बड़ी मात्रा में करना पड़ रहा है। जीवाश्म ईधन के जलने पर कार्बन डाईआॅक्साइड पैदा होती है।और धरती को लगातार गर्म कर रहीं है। विश्व में हर जगह बिजली की ज्यादा से ज्यादा जरुरत बढ़ती जा रही है। इसलिये इसका अधिक से अधिक उत्पादन करने के लिये जीवाश्म ईंधन के जलने पर कार्बन डाईआॅक्साइड पैदा होती है जो ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव को बढ़ा देती हैं। इसका नतीजा ग्लोबल वार्मिंग के रुप में सामने आता है।
यदि जल्द ही कोई उपाय नहीं किया गया तो अगले दो दशकों में धरती का तापमान 0.3 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक की दर से बढ़ेगा।आज जलवायु में बड़ी तेजी से परिवर्तन हो रहा है। अभी बहुत गर्मी, फिर थोड़ी देर में ठंडक या बिन मौसम बारिश कोई ठिकाना नहीं । इस पल -पल बदलते मौसम से लोग जल्दी-जल्दी बीमार तो होते ंही हैं हमारी फसलों को भी भारी नुकसान होता है।इसी तरह तापमान में वृद्वि होती रहेगी तो मनुष्य.पेड़ पौधे. जीव जन्तु सभी त्रस्त हो तबाह हों जायेंगे। मनुष्य पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा । लोग कई संक्रामक बीमारियों के शिकार होंगें । मलेरिया. डेंगू यलो फीवर आदि ज्यादा गर्मी में होने वाले रोग है।स्वच्छ पानी. स्वच्छ वायु सभी के लिये लोग तरस जायेंगें।गर्मी कम करने के लिये लोग बिजली के उपकरण इस्तेमाल करेंगें जिससे बिजली ज्यादा खर्च होगी और फिर और भी ज्यादा ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ेगा।
ग्लोब्ल वार्मिंग की वजह से आने वाले समय में भीषण तूफान, बाढ़. जंगल में आग जैसे घटनायें तेजी से बढ़ेगीं। जल स्तर बढ़ने की वजह से समुद्र के किनारे वाली आबादी समुद्र में समा जायेगी। इजराइल के एक शोधकर्ता ने दावा किया है कि प्रत्येक डिग्री सेल्यिस गर्मी में वृद्वि बिजली कड़कने की प्रक्रिया में 10 फीसद की बढ़ोत्तरी कर देगी।विज्ञान पत्रिका जियोफिजिकल रिसर्च एंड एडमाॅसफेरिक रिसर्च ने इसी विषय के संबध में कम्प्यूटर जलवायु व असल जलवायु परिर्वतनों पर अध्ययन किया और बताया कि आसमानी बिजली बढ़ोत्तरी होने से विशेष क्षेत्रों में प्रभाव पड़ेगा।यह प्रभाव अमेरिका के दक्षिणी हिस्से और भूमध्य सागर मे क्षेत्रों को गरम व सूखा कर देगा।मौसम विभाग के 100 साल के आंकड़ो के अनुसार सन् 2000 से 2010 तक का वर्ष सबसे गर्म रहा व 1998 शताब्दी का सबसे गर्म वर्ष रहा ।गर्मी अपने पूरे तेवर दिखा रही है। इस सदी के अंत तक देश का औसत तापमान 5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है।इन सबका असर कृषि उत्पादन पर भी बहुत पड़ेगा। गेंहू. कपास. सब्जियों का उत्पादन सबसे ज्यादा प्रभावित होगा।जिस पर अधिकतर किसान निर्भर है।इस सदी के अंत तक गेंहू के उत्पादन में लगभग 270 लाख टन की कमी आ सकती है।जनवरी 2011 में पुणे के एक रिसर्च इंस्टीट्यूट के एक रिसर्च की स्टडी में इस बात की चेतावनी दी गयी कि सन् 2050 तक भारत की हरियाली वाले कई क्षेत्र रेगिस्तान में बदल जायेंगें।गर्मी का मौसम काफी लंबा हो जायेगा, ये दिन काटे नहीं कटेंगें।
ग्लोब्ल वार्मिंग की वजह से 60 हजार स्काॅवयर किलोमीटर में फैले हिमालय के ग्लेशियर अब तबाही की कगार पर है। हिमालय के 54 ग्लेशियर धीरे-धीरे पिघल रहें है।गंगा. बृहमपुत्र नदियां सूख सकतीं है।रिसर्च में पाया गया है कि दुनिया भर में बढ़ते प्रदूषण व जंगलों के कटान से सन् 2030 तक भारत में हिमालय के ग्लेशियरों पर काफी असर पड़ सकता है।सेंटर फाॅर इन्टीग्रेटेड माउन्टेन डेवलपमेंट की रिसर्च में बताया गया है कि पिछले 30 सालों में भूटान से सटे हिमालय में 22 फीसद ग्लेशियर पिघल चुके हैं।वहीं नेपाल में 21 फीसद व भारत में मौजूद हिमालयन रेंज के 15 प्रतिशत ग्लेशियर खत्म हो चुकी है।ये पिघलते हुये ग्लेशियर आने वाले समय में बहुत बड़ी समस्या खड़ी कर देंगें।जानकारों का कहना है कि इससे धीरे-धीरे नदियों का जल स्तर बढ़ जायेगा और हिमालय से निकलने वाली नदियों का स्त्रोत ही सूख जायेगा।ग्लेशियरों से पिघलने वाली बर्फ से समुद्र में जल स्तर बढ़ जायेगा जिससे प्राकृतिक तटों का कटाव शुरु हो जायेगी और धीरे-धीरे एक बड़ा हिस्सा डूब जायेगा।जिससे समुद्री इलाकों में रहन वाले काफी लोग बेघर हों जायेंगें।
ग्लोबल वार्मिंग से सारी दुनिया त्रस्त है। दुनिया भर के वैज्ञानिक इस विषय पर बहुत चिन्तित है और इसे रोकने के लिये काफी प्रयास कर रहें है।ं लेकिन इस ओर युद्व स्तर पर काफी तेजी से प्रयास करने की आवश्यकता है। इसके लिये तो सबसे पहले हानिकारक गैंसों के उत्सर्जन व धुयंे को कम करना होगा। इसके लिये पेट्रोल. डीजल और बिजली का उपयोग कम करना चाहियें।वाहनों से व कारखानों से निकलने वाले विषैले धुंये पर प्रतिबंध लगाना होगा। इसके साथ जंगलों को कटने से रोक कर और भी अधिक से अधिक पेड़ पौधे लगायें।बिजली का अनावश्यक प्रयोग पर पांबदी लगनी चाहिये।आवश्यकता न होने पर बिजली के उपकरण व स्विच आॅफ कर देने चाहिये और उर्जा बचाने वाले उपकरण ही प्रयोग करने चाहिये।इसके अलावा रेफ्रीजरेटर्स ऐसे बनायें जिनमें सीएफसी का इस्तेमाल न होता हो क्योंकि यह भी एक कारक है ग्लोबल वार्मिंग का।लोगों को नीजि वाहनों का कम से कम प्रयोग कर सार्वजनिक वाहनों या शेयर करके वाहनों का प्रयोग करना चाहिये। हम अपने घर व घर के आसपास के वातावरण का स्वच्छ बनाये रखना चाहिये। कूड़ा करकट घर के आसपास न इकट्ठा करें और वस्तुओं को बेकार न फेंककर रिसाइलिकिंग कर उसे प्रयोग करने पर जोर दें।
हम ग्लोबल वार्मिंग पर गंभीरता से विचार कर उसे रोकने के लिये कुछ ठोस कदम उठाये जाने की बेहद आवश्यकता है वरना वह दिन दूर नहीं जब सारा विश्व धरती के बढ़ते तापमान की भट्ठी में झुलस कर तबाह हो जायेगा।हमें लोगों को इसके बढ़ते खतरे के बारे व इससे बचने के बारे में जागरुकता अभियान चलाना होगा। सभी देशों को एकजुट हो विश्वस्तरीय इस गंभीर समस्या से निपटने के बारे में विचार विमर्श कर उन उपायों पर शीघ्रताशीघ्र अमल में भी लाना होगा तभी धरती को ग्लोबल वार्मिंग जैसे भयावह संकट से बचाया जा सकता है।

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