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भगवान ने सिर्फ इंसान बनाया

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हमारे देश में आॅनर किलिंग बहुत ज्यादा देखने में आ रही है।जब मां-बाप अपने बच्चों को अपनी जाति, धर्म के विरुद्व अपनी मर्जी से शादी करते देखते हैं तो उन्हें बर्दाश्त नहीं होता और वे उनकी जान तक ले लेते हैं। अपनी जाति, धर्म, समाज यह सब जो हम इंसानों के द्वारा ही बनाये गये हैं वह सब अपने बच्चों से ज्यादा कीमती होते हैं क्या? जब कोई किसी के बच्चों को तकलीफ पहुंचाता है तो उसके मां बाप का खून खौल जाता है।उसकी आंखों में एक आंसू वह नहीं देख पाते हैं, उसकी हर जरुरत पूरी करते है, उसकी पंसद का ख्याल रखते हैं। उसके सपने, ख्वाहिशें पूरी करने के लिये, उसकी खुशी के लिये न जाने कितने त्याग करते हैं, न जाने कितने कष्ट सहते हैं।लेकिन इतना ज्यादा प्यार करने वाले मां -बाप का प्यार उस समय क्यों छूमंतर हो जाता है, जब उनके बच्चे अपनी जाति बिरादरी या समाज के नियमों के परे जाकर अपना जीवन साथी तलाश लेते है।जो कि उनके बच्चे की सबसे बड़ी खुशी होती है। बस सिर्फ जाति, धर्म, समाज के नाम पर अपने बच्चों की बलि चढ़ा देते हैं।ये जाति, धर्म, समाज हम इंसानों के द्वारा ही बनाये गये हैं। फिर ये इंसानेां के द्वारा बनाये गये रीति, रिवाज, परंपरायें, सामाजिक नियम क्या उनके कलेजे के टुकड़ों से ज्यादा प्रिय हो जाते हैं।आखिर प्यार के सागर मौत के दरिया में कैसे तब्दील हो जाते हैं?
भगवान ने तो सिर्फ इंसान को बनाया था लेकिन ये धर्म, जाति, समाज, परंपरायें, रीति, रिवाज, कायदे, कानून इंसानेां के द्वारा ही बनाये गयें है।यदि हम भगवान को मानते हैं, पूजते हैं तो फिर हमें उसी के बनाये कायदे पर चलना चाहिये न कि अपने बनाये गये नियमों पर। यदि हम ईश्वर के द्वारा बनाये गये इंसान में जाति,मजहब के नाम पर भेदभाव कर रहें है ।क्या ये ईश्वर की अवहेलना नहीं है? यदि ईश्वर की कृति इंसान को हम बांट कर अलग-अलग श्रेणी में रखकर , उनसे भेदभाव करते हैं, नफरत करते हैं तब क्या हमारा भगवान हमसे प्रसन्न होता है। नहीं, फिर भी हम ऐसा करते हैं।क्योंकि हम भगवान से नहीं अपने आप से प्यार करते है, अपने अहंकार से प्यार करते हैं और ईश्वर के नाम के सहारे अपनी अहंकार की ही संतुष्टि करते हैं कि हमारे द्वारा बनाये गये नियमों, धर्म, जाति के बाहर जाकर हमारे बच्चों ने हमसे बिना पूछे अपना जीवन साथी तलाश कर लिया । इस बात से उनके अहंकार को ठेस पहुंचती है। और अपने इस अहंकार के कारण ही वे अपने जान से ज्यादा प्यारे बच्चों की जान लेने से परहेज नहंी करते हैं। पता नही ंहम कब इन धर्म, जाति के फेर से निकलकर सिर्फ और सिर्फ इंसानियत को तरजीह देगें।
यह सब शायद तभी रुकेगा जब जाति और मजहब न रहे ।खैर यह बहुत मुश्किल है, क्योंकि इनकी जड़ें बहुत ज्यादा गहरीं हैं। आये दिन जाति धर्म के नाम पर खून खराबा होता रहता हैं, दंगे फसाद होते हैं।गुजरात का रेल कांड, मुजफफरपुर दंगे का उदाहरण सामने है। लेकिन दृढ़ इरादे से प्रयास किया जा सकता है। सबसे पहले तो स्कूलों, काॅलेजों, आॅफिसों में जाति सूचक शब्दों का प्रयोग पर पांबदी लगा देनी चाहिये।इसके साथ ही अन्र्तजातिय विवाह किये जाने पर मिलने वाली प्रोत्साहन राशि को बहुत बढ़ा देना चाहिये।धर्म, जाति के नाम पर होने वाले सम्मेलन, संस्थाओें पर भी रोक लगनी चाहिये । राजनैतिक पार्टियेां के द्वारा किये गये धार्मिक, जातीय रैलियों पर रोक के लिये सख्ती होनी चाहिये। इसके साथ ही एक ही धर्म, जाति या समुदाय को मिलने वाले लाभ पर पर रोक लगनी चाहिये। सभी धर्म, जाति, समुदाय को बराबर लाभ मिलना चाहिये, उनका विकास होना चाहिये। केवल असक्षम, गरीब व असहाय लोगों को ही अधिक लाभ की सुविधा देनी चाहिये और धर्म और जाति सिर्फ एक ही ‘मानवता‘ का होना चाहिये।हम इन्हीं मजहब, जाति के लड़ाई में ही उलझे रह जाते हैं और दूसरे देश के लोग इसका फायदा उठा लेते हैं, जैसा कि सीमा पार पाकिस्तान व चीन के द्वारा किया जा रहा है। हमारे देश के राजनेता एक दूसरे पर आरोप, प्रत्यारोप और बहस में ही फंसे रहते हैं ।उनकी आपसी लड़ाई का फायदा उसी तरह बाहरी देश उठाते हैं जैसे दो बिल्लियों की लड़ाई में बंदर रोटी ले जाता है और जनता के बीच धर्म, जाति की लड़ाई का फायदा हमारे राजनेता उठाते हैं।वे हमें हमारे समुदाय के विकास का लाॅलीपाॅप पकड़ा देते है, हम स्वाद लेते रह जाते हैं और वे अपनी राजनैतिक रोटियां सेंक कर खा भी लेते हैं।
धर्म हमें गलत रास्ते पर जाने से बचाता है, हमें सही राह दिखाता है, हमें सूकून, शांति देता है, वह हमें किसी का खून बहाना, किसी का गला काटना नहीं सिखाता। फिर क्यों हम धर्म के नाम पर ऐसा करते हैं। यदि हम सही मायने में धर्म का पालन करें तो ये दुनिया में कोई गम ही न हो, सभी मिल जुल कर खुशी -खुशी रहें। लेकिन हम धर्म के सही अर्थ को न समझ कर पता नहीं क्या -क्या समझ लेते हैं।क्यों हम दूसरों के हाथों का खिलौना बन जाते हैं? दूसरों के हाथ की कठपुतली बन कर नाचते रहते हैं।हमें अपने विवेक और अंर्तमन की आवाज सुननी चाहिये न कि दूसरों के द्वारा फैली गईं अफवाहों पर ध्यान देना चाहिये।यदि इंसानियत और मानवता के धर्म को अपनायेंग तो हम ही नहीं पूरा विश्व ही आनंद उत्सव मनायेगा।

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